शनिवार, 6 मार्च 2021

नशा

 नशा 

नशा झन करबे भइया
जिनगी खुवार हो जाथे
नइ तो बांचय कांही 
सबो जिनिस बाजार बेंचाथे

जांगर टोर कमाये संगी
तैंहा गरवा बरोबर
पइसा पाये तहां किंजरे तैं
मंद महुंआ के चक्कर
कमई खवई छुट जाथे
नशा म ज़िनगी नाश हो जाथे
नइ तो बांचय कांही
घर दुवार सबो बेंचाथे ।।

दाई ददा के बुढ़तकाल के

तैंहर सहारा हस
लोग लइका के सुघ्घर
भविष्य के तैं अधारा हस
जे घर नशा म बुड़ जाथे
लोग लइका भुखन रही जाथे
नइ तो बांचय कांही
खेत खार तको बेंचाथे ।।

टप टप जइसे महुंआ गिरथे
धीर धीर तोला गिराही
बीड़ी पीये, धुंआ उड़े
जिनगी ल धुंआ धुंआ बनाही
नशा म सब बिगड़ जाथे
फेर कोन्हों नंइ सहुंराथे
नइ तो दिखय  कांही
चारो मुड़ा अंधियार हो जाथे।।

नयताम हिरेश्वर "बस्तरीहा"