मंगलवार, 25 अक्टूबर 2022

 जुगुर जागर सुरहूती के दिया करय,

सफो के जिनगी म अंजोर, 

नान्हें - बड़े जम्मो जीव जंतुन

बनय जी सजोर।

बंधाये रहाय सुघ्घर 

मया पीरा के डोर,

सुनता के गाड़ी बइला

रेंगय खोर- खोर।।


सुख छईंहा बगरय चारों खुंट,

हरियर हरियावय सुक्खा

लकड़ी के ठुंठ,

काखरो घर के चुल्हा कभू, 

रहय झन ठाड़े उपास,

समुंद के तीर म बइठके 

कोन्हों झन रहय प्यास।।

दया धरम नंदावय  झन

मनखे ले मनखे जोर।

अंधियारी झन रहय कताहू तीर

देखव जी सबो ओर -छोर।।


बछर भर के परब म जइसे

घर दुवार उजराही

सार होही ये परब जब,

मन म जामे मइल फरियाही

तोर मुहांटी के दिया अंजोर,

दुसर मुंहाटी म जावय।

जुरमिल अंधियारी मेटके

सबो डहर अंजोर बगरावय।।

बगरय दुनिया म जस कीरति

उड़य नांव के शोर।

अपन तन ल जलाके दींया

जग म बगराथें अंजोर।।

 

हांसी खुशी सुख बगरय

कोठी डोली भरय घरो-घर।

नवा फसल के परब देवारी

झूलय धान-कोदो खेती खार।। 

ईसर गउरा के बिहाव सुरहुती

हमर संस्कृति के चिन्हारी

कोठा के सेवा संग खिचरी

खेती किसानी तिहार देवारी।

पुरखौती के नीति नियम

चलत हे लोर के लोर‌।

मेटावय झिन असल अरथ 

येखर जिम्मा हावय तोर मोर।।