दुर्गावती रानी आ
५२ गड़ म राज चला
तोर बिना राज करइया
कोन्हों नइहे ओ
तोर असन राज करइया
कोन्हों नइहे ओ।।
चंदेल वंश के तैंहर बेटी
गोंडवंश के महारानी
मरई कुल के कुलवधू तैं
राजा दलपत के रानी
तोर आघु घुटना टेकिस बइरी
तैं खुब लड़े मर्दानी
देश धर्म गोंडवाना के खातिर
कर दिये कुर्बानी, दाई
कर दिये कुर्बानी
अदम्य साहसी गुनवती
ननपन ले होय चिन्हारी
राज काज तैंहा सम्हाले
देखे दुनिया सारी
चल बसे जब राजा दलपत
छोड़ राज्य के जिम्मेदारी
सफेद हाथी सरवन म चढ़हे
कमर म खोंचे कटारी, दाई
कमर में खोंचे कटारी
सुवारथ के सेती एक परजा
अकबर ल भेद बताए
लड़त लड़त आघु बढ़गे रानी
नरइ नरवा के बाढ़ म छेंकाये
अंतिम सांस ले लड़े रानी
गर्दन अऊ आंखी म तीर गोभाये
जियते जियत दुश्मन के हाथ नइ आय
छाती म कटार भोंस देश के मान बढ़ाये, दाई
देश के मान बढ़ाये।।