शनिवार, 12 जून 2021

आदिवासी हूं

 आदिवासी हूं न

जानता हूं मैं एकदिन मारा जाऊंगा
आदिवासी हूं न
कभी नक्सली माओवादी बताकर
कभी मुखबिरी की शक में
गोलियों से भूना जाऊंगा
आदिवासी हुं न।।

झुठे मामलों में फंसाकर
जेल की चक्की पिसवायेंगे।
कोर्ट कचहरी कायदे कानून
अदालतों के चक्कर लगवायेंगे।।
पीयेंगे शराब वे लुटकर
और आबकारी एक्ट लगायेंगे
सरकारी नुमाइंदे हैं साहब
कितनों से लड़ पाऊंगा।।
आदिवासी हूं न
जानता हूं मैं एकदिन मारा जाऊंगा।।

तुम्हें खनिज संपदा कारखाने चाहिए 
मुझे पर्वत पठार और जंगल
कैम्प लगा रहे जगह जगह
मुझे मेरी ही जमीनों से करना है जो बेदखल
कानुन भी है हमारे तुम्हारे लिए
पर तुम्हारे हिसाब से जाते बदल।।
तुम्हारे जुल्मों के खिलाफ कितना लिख पाऊंगा
आदिवासी हूं न
जानता हूं एक दिन मैं मारा जाऊंगा।।

नयताम हिरेश्वर

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