मैं मालिक हुं
इस गोंडवाना बुम की
भारत देश की।।
मैं मालिक हुं
जल जंगल जमीन की
पर्वत पठारों की।
झर झर करते झरनों की
कल-कल बहती नदियों की।।
तो फिर...
मेरी ज़मीं पर बहती नदियों की
चांदी जैसी रेत तुम्हारा
कैसे हो सकता है??
पर्वत पठारों से निकलने वाले
लोहा बाॅकसाइट तुम्हारा
कैसे हो सकता है??
जमीं के गर्भ में छिपे बेशकिमती
चांदी सोना हीरा अभ्रक तुम्हारा
कैसे हो सकता है??
खनिज सम्पदाओं की दोहन के लिए
तुम करोड़ों वृक्ष कैसे काट जाते हो??
लोगों की पुश्तैनी गांव और जमीनें छीन
उन्हें बेघर कैसे कर जाते हो??
तुम्हारा जमीर तुम्हें नहीं धिक्कारता
असंख्य जीवों की हत्यारा कहकर।।
खानापूर्ति के लिए तुमने कानून बनाये
फिर खुद ही नियम कानूनों की
धज्जियां उड़ाते हो।
सब कुछ तो छिन लिये मुझसे
संविधान के विरूद्ध जाकर।।
पर कभी मिटा नहीं पाओगे वजुद मेरा
मेरी मालिकीयत की गवाही
ये धरती प्रकृति देगी
देश की मालिक होने का गौरव मेरा
छिन नहीं पाओगे।
क्योंकि कल भी मैं मालिक था
और आज भी
मैं मालिक हुं।।
✍️ नयताम हिरेश्वर
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