बुधवार, 23 जून 2021

दुर्गावती रानी

दुर्गावती रानी आ
५२ गड़ म राज चला
तोर बिना राज करइया
कोन्हों नइहे ओ
तोर असन राज करइया
कोन्हों नइहे ओ।।

चंदेल वंश के तैंहर बेटी
गोंडवंश के महारानी
मरई कुल के कुलवधू तैं
राजा दलपत के रानी 
तोर आघु घुटना टेकिस बइरी
तैं खुब लड़े मर्दानी 
देश धर्म गोंडवाना के खातिर
कर दिये कुर्बानी, दाई
कर दिये कुर्बानी

अदम्य साहसी गुनवती 
ननपन ले होय चिन्हारी
राज काज तैंहा सम्हाले
देखे दुनिया सारी
चल बसे जब राजा दलपत
छोड़ राज्य के जिम्मेदारी
सफेद हाथी सरवन म चढ़हे
कमर म खोंचे कटारी, दाई
कमर में खोंचे कटारी

सुवारथ के सेती एक परजा
अकबर ल भेद बताए
लड़त लड़त आघु बढ़गे रानी
नरइ नरवा के बाढ़ म छेंकाये
अंतिम सांस ले लड़े रानी
गर्दन अऊ आंखी म तीर गोभाये
जियते जियत दुश्मन के हाथ नइ आय
छाती म कटार भोंस देश के मान बढ़ाये, दाई
देश के मान बढ़ाये।।




सोमवार, 14 जून 2021

मैं मालिक हुं

मैं मालिक हुं
इस गोंडवाना बुम की 
भारत देश की।।
मैं मालिक हुं
जल जंगल जमीन की
पर्वत पठारों की।
झर झर करते झरनों की
कल-कल बहती नदियों की।।

तो फिर... 
मेरी ज़मीं पर बहती नदियों की
चांदी जैसी रेत तुम्हारा 
कैसे हो सकता है??
पर्वत पठारों से निकलने वाले
लोहा बाॅकसाइट तुम्हारा
कैसे हो सकता है??
जमीं के गर्भ में छिपे बेशकिमती
चांदी सोना हीरा अभ्रक तुम्हारा
कैसे हो सकता है??

खनिज सम्पदाओं की दोहन के लिए
तुम करोड़ों वृक्ष कैसे काट जाते हो??
लोगों की पुश्तैनी गांव और जमीनें छीन
उन्हें बेघर कैसे कर जाते हो??
तुम्हारा जमीर तुम्हें नहीं धिक्कारता
असंख्य जीवों की हत्यारा कहकर।।

खानापूर्ति के लिए तुमने कानून बनाये
फिर खुद ही नियम कानूनों की
धज्जियां उड़ाते हो।
सब कुछ तो छिन लिये मुझसे
संविधान के विरूद्ध जाकर।।
पर कभी मिटा नहीं पाओगे वजुद मेरा
मेरी मालिकीयत की गवाही
ये धरती प्रकृति देगी
देश की मालिक होने का गौरव मेरा
छिन नहीं पाओगे।
क्योंकि कल भी मैं मालिक था
और आज भी 
मैं मालिक हुं।।
✍️ नयताम हिरेश्वर

सिलगेर बीजापुर १७/०५/२१

प्रकृति की शांत वादियों में
पसरा है मातम जंगलों के अंदर
कैसा है खेला विकास का
आज पुछता है बस्तर।।

बीहड़ जंगलों में जहां सुर्य की किरणें
जद्दोजहद के बाद पहुंच पाती है,
आदिवासियों की गांवों में 
आसानी से पुंजीपति कैसे पहुंच जाती है।।
लूट ले जाना चाहते हैं सबकुछ
अमूल्य खनिजों पर है तुम्हारी नजर
कैसा है खेला विकास का
आज पुछता है बस्तर।।

एक ही देश के अंदर रहते हैं
फिर सीमाओं सा तारों का क्यों घेरा है
स्वच्छंद विचरते थे जहां 
आज वहां कैम्पों का क्यों डेरा है।।
पुछ न सके कोई सवाल इसलिए
यहां शिक्षा का है निम्न स्तर
कैसा है खेला विकास की
आज पुछता है बस्तर।।

५वीं अनुसुची पेसा कानुन में
ग्रामसभा को है सर्वोच्च अधिकार
फिर क्यों ग्रामसभा के बगैर
भुमि अधिग्रहण और असंवैधानिक
कार्य करती है सरकार।।

रेलाओं के गीत गुंजते जहां

आज लहुलुहान है बस्तर

कैसा है खेला विकास का

आज पूछ्ता है बस्तर।।


नयताम हिरेश्वर

नक्सली बनते नहीं हैं

नक्सली बनते नहीं साहब
नक्सली बनाये जाते हैं।।

शहरों से दूर जंगलों में रहते 
समाज के शांत जीवन जीने वाले
सरल स्वभाव आदिवासी मुलनिवासी 
अक्सर जब  सताये जाते हैं
उनके ही जमीन से जबरन
उन्हें हटाये जाते हैं तब
पुर्वजों की जमीन को बचाने
लामबंद हो हथियार उठाते हैं।।
छीन जाती है जीने का साधन
तब नक्सली बनने मजबुर हो जाते हैं
नक्सली बनते नहीं साहब
नक्सली बनाये जाते हैं।।

मानवाधिकार की धज्जियां उड़ाते फोर्स
फर्जी मुठभेड़ में लोग मारे जाते हैं
शिक्षित युवा बेरोजगार बैठें 
आउटसोर्स से स्थानीय पद भरे जाते हैं
वनोपज लाते खेतों में काम करने वाले
गोलियों से इनके मारे जाते हैं
पहनाकर नक्सली कपड़े लाशों को
फिर माओवाद बताये जाते हैं।।
नक्सली बनते नहीं साहब
नक्सली बनाये जाते हैं।।

बहन बेटियों की आबरु जब
सुरक्षाबलों द्वारा लुट लिये जाते हैं
अधिकारों के लिए आवाज उठाते लोग
जबरन गिरफ्तार कर लिए जाते हैं
फंसाकर झुठे मामलों में
कोर्ट कचहरी की चक्कर लगवाते हैं
न्याय नहीं मिलता निर्दोषों को
तब अदालतों से खिन्न हो जाते हैं
भ्रष्ट व्यवस्थाओं से टुट चुके लोगों का
नक्सली फायदा उठा जाते हैं।।
नक्सली बनते नहीं साहब
नक्सली बनाये जाते हैं।।

नयताम हिरेश्वर

शनिवार, 12 जून 2021

आदिवासी हूं

 आदिवासी हूं न

जानता हूं मैं एकदिन मारा जाऊंगा
आदिवासी हूं न
कभी नक्सली माओवादी बताकर
कभी मुखबिरी की शक में
गोलियों से भूना जाऊंगा
आदिवासी हुं न।।

झुठे मामलों में फंसाकर
जेल की चक्की पिसवायेंगे।
कोर्ट कचहरी कायदे कानून
अदालतों के चक्कर लगवायेंगे।।
पीयेंगे शराब वे लुटकर
और आबकारी एक्ट लगायेंगे
सरकारी नुमाइंदे हैं साहब
कितनों से लड़ पाऊंगा।।
आदिवासी हूं न
जानता हूं मैं एकदिन मारा जाऊंगा।।

तुम्हें खनिज संपदा कारखाने चाहिए 
मुझे पर्वत पठार और जंगल
कैम्प लगा रहे जगह जगह
मुझे मेरी ही जमीनों से करना है जो बेदखल
कानुन भी है हमारे तुम्हारे लिए
पर तुम्हारे हिसाब से जाते बदल।।
तुम्हारे जुल्मों के खिलाफ कितना लिख पाऊंगा
आदिवासी हूं न
जानता हूं एक दिन मैं मारा जाऊंगा।।

नयताम हिरेश्वर

जंगल

 जंगल....

जंगल हमारे लिए महज जंगल नहीं
हमारी धरोहर है विरासत है
पेड़ पौधों से हम प्रेम करते
जंगलों पर हक जताते हैं
उजड़ न जाये कहीं ये जंगल
संरक्षण सुरक्षा करते जाते हैं
आग लगने से बचाते
समूल नष्ट के खिलाफ हो जाते हैं
लोग कहते हैं ये तो जंगल है 
और हम हमारी संपत्ति बताते हैं।।

पक्षियों संग बोलना,
पशुओं संग चलना सीख पाये हैं
नदियों संग बहना और गाना, 
जंगलों संग खेले खाए हैं
फिर बंदुकधारी वनरक्षक आये
कहते हैं वन हमने ऊगाये हैं
हमने तो पहले कभी नहीं देखा इन्हें
गांव हमारे पुरखों ने ही बसाये हैं।।

जंगलों संग हमारा गहरा नाता है
छांव इनके जैसे मां का आंचल है
हर पेड़ वनस्पति, फलों को पहचानते 
वे भी हमें पहचान, बेटे सा रखते ख्याल हैं
जब कोई कानून नहीं था तब खुब जंगल थे
कानून बना कटे महुआ तेंदू और साल हैं
पशु पक्षियों का उजड़ा आसियाना
कृत्रिमता जैव विविधता के काल हैं।।
# Save Nature#save Indigenous#

नयताम हिरेश्वर


बस्तर माटी

 मोर बस्तर के माटी ये

ऊंच ऊंच रुखवा राई 
बड़े बड़े डोंगरी पहाड़ी
नदिया नरवा कछार
जंगल झाड़ी हे रे।। मोर बस्तर के माटी ये
मोर बस्तर के माटी ये रे
मोर बस्तर के माटी ये।।

सरई सागोन महुआ चार 
मन ल भाथे खेती खार
कोदो कुटकी उपजय धान
महुआ लाटा सुग्गर पकवान
उड़ीद हिरवा कांदा कुसा
छिंद महुआ सल्फी रसा
टिकुर लांदा मढ़ीया पेज
चटनी चपोड़ा चांटी के रे।‌। 
मोर बस्तर के माटी ये

पेन कर्रसाड़ अऊ रेला पाटा 
बस्तरहिन दाई दंतेवाड़ीन माता
आंगा छत्तर डांग डोली
हल्बी भतरी गोंडी के बोली
गांव गांव बुमियार जिम्मिदारीन
गांयता मांझी पटेल सियानी
मावली माय,भंगार माई बइठे
१२भांवर केशकाल घाटी ये।।
मोर बस्तर के माटी ये।

चटका चुटकुली हुल्की मांदर
कोलांग पर्रांग नांचय झुमर
बारसुर कुटुमसर चितेरकोट
देखे बर आंथय दुर दुर से लोग
जिला कयंकर कोंडागांव जगदलपुर
सुकमा कोंटा दंतेवाड़ा नारायणपुर
बोहाथे डंकिनी शंखिनी इन्द्रावती
लागे छत्तीसगढ़ के सांटी ये रे।।
मोर बस्तर के माटी ये।
मोर बस्तर के माटी ये रे।
मोर बस्तर के माटी ये।।

नयताम हिरेश्वर