शुक्रवार, 24 अप्रैल 2020

कोन कुटत होही जुन्ना धान ढेंकी म......

ढेंकी मुसर के नइ रह गिस जमाना
नंदावत हे दिन दिन तइहा के बाना
कोन कुटत होही जुन्ना धान ढेंकी म
कहांचु नइ तो  दिखय बाहना

ढकरस ढकरस ढेंकी बाजे, सुर निक लागे
दाई हा धान कुटे , परोसिन बइठे बर आगे।।
सुनता के गोठ दुनों झन गोठीयावथें
ढेंकी नइहे जिंकर तेमन कुटे बर जुरियावथें।।
हांसी ठिठोली करत दाई बहिनी गावंय गाना
कोन कुटत होही जुन्ना धान ढेंकी म
कहांचु नइ तो दिखय बाहना।।

ढेंकी म कुटके धान हांडी म भात रांधय
सिरतोन वो बखत भात पेज गजब मिठावय
अब तो धनकुटी आगे, मनखे कोड़ीया होगे
आनी बानी खाये पिये, अऊ देहे रोगिया होगे
सुने बर नइ मिलय कहांचो अब तरे हरे नाना
कोन कुटत होही जुन्ना धान ढेंकी म
कहांचु नइ तो दिखय बाहना।।

✍️ नयताम हिरेश्वर

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें