शनिवार, 25 अप्रैल 2020

फेर मढ़ीया के पेज मन भागे....

जेठ आषाढ़ के महीना आगे
अऊ घाम हा बईहागे
तरमर तरमर जीवरा लागे
फेर मढ़ीया के पेज  मन भागे ।।

अगास म हावय आगी बारे
धरती हा बड़ झांझ मारे
प्यास बुझावय नहीं पानी तात लागे
कहां पाबे जुड़ जुड़हा हवा घमांगे ।।
सुहावय नहीं अब गउ भात सागे
फेर मढ़ीया के पेज मन भागे ।।

तन बदन ल घाम जरावत हे
डाहा मारत हे देहें पसीना बोहावत हे
तपगे धरती अंगार बरत हे
पनही बिन पांव ल ,भुमंरा  जरत हे ।।
कोसुम आमा के छांय निक लागे
फेर मढ़ीया के पेज मन भागे ।।

शहरीया  घर म एसी चलावत हे
गांव के गंवईहा खेती कमावत हे
आइसक्रीम पेप्सी शहर म खावत हें
गांव म घर घर मढ़ीया पेज जमावत हें ।।
कटोरा धरके परोसी पेज मांगे बर आगे
फेर मढ़ीया के पेज मन भागे ।।

✍️ नयताम हिरेश्वर

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