सरकारी गोदामों में रखे अनाज
खराब हो रहे हैं
जरा बाहर झांक कर तो देखो साहब
मेरे देश में लोग भुखे सो रहे हैं
व्याकुल हैं लोग भुख प्यास में
निकले हैं घर से काम की तलाश में
मिल जाए कहीं कुछ खाने को
चल रहे भरी दुपहरी भोजन की आस में
पकड़े गऐ तो खड़े होंगे घेरे में सवालों के
बगैर कुछ जाने अंबार लगा देंगे बवालों के
सुरक्षाकर्मी डंडा लाठी से इन्हें कुटेंगे
पेट के मारों से मजबुरी कोई क्यों पुछेंगे??
रोजी रोटी छिन गई है साहब गरीबों की
भुख में तड़पते बच्चे रो रहे हैं।
जरा बाहर झांक कर तो देखो साहब
मेरे देश में लोग भुखे सो रहे हैं।।
कमाऊ बेटे फंसे हैं लाकडाउन के चक्कर में
नहीं है दाना पानी साहब मेरे घर अंदर में
देशद्रोही नहीं हम साहेब पेट के मारे हैं
कहां जाकर हाथ फैलायें नहीं कोई सहारे हैं
सरकार कहती है गरीबों के हम साथ खड़े हैं
मदद की आस में हम कई दिनों से भुखे पड़े हैं
रिकसा लेकर निकल पड़ा अस्सी साल का लाचार
हाथ जोड़ मिन्नतें कर रहा है वह बार बार।।
हवा मत निकालो साहब टायर का
घर कैसे जायेंगे कहते कहते रो रहे हैं।
जरा बाहर झांक कर तो देखो साहब
मेरे देश में लोग भुखे सो रहे हैं।।
शौक नहीं हमें घर से बाहर जाने की
जिम्मेदारी है साहब परिवार को खिलाने की
नहीं जली है चुल्हा मेरे घर परसों से
हम तो भुखे रह लेंगे साहब पर क्या कहेंगे बच्चों से
मेहनत खूब करते हम पाने दो वक्त की रोटी
बाहर नहीं जायेंगे दे हमें भोजन काम की गारंटी
मजबुरी में ही निकले हैं गरीब अपने घर से
जरा देखो तो साहब जिम्मेदारी की नजर से।।
भुखे प्यासे पैदल चलते न जाने
कितने खो रहे हैं
जरा बाहर झांक कर तो देखो साहब
मेरे देश में लोग भुखे सो रहे हैं।
मेरे देश में लोग भुखे सो रहे हैं।।
देश की मौजूदा हालात देखकर दिल से निकली पंक्तियां
✍️ नयताम हिरेश्वर
खराब हो रहे हैं
जरा बाहर झांक कर तो देखो साहब
मेरे देश में लोग भुखे सो रहे हैं
व्याकुल हैं लोग भुख प्यास में
निकले हैं घर से काम की तलाश में
मिल जाए कहीं कुछ खाने को
चल रहे भरी दुपहरी भोजन की आस में
पकड़े गऐ तो खड़े होंगे घेरे में सवालों के
बगैर कुछ जाने अंबार लगा देंगे बवालों के
सुरक्षाकर्मी डंडा लाठी से इन्हें कुटेंगे
पेट के मारों से मजबुरी कोई क्यों पुछेंगे??
रोजी रोटी छिन गई है साहब गरीबों की
भुख में तड़पते बच्चे रो रहे हैं।
जरा बाहर झांक कर तो देखो साहब
मेरे देश में लोग भुखे सो रहे हैं।।
कमाऊ बेटे फंसे हैं लाकडाउन के चक्कर में
नहीं है दाना पानी साहब मेरे घर अंदर में
देशद्रोही नहीं हम साहेब पेट के मारे हैं
कहां जाकर हाथ फैलायें नहीं कोई सहारे हैं
सरकार कहती है गरीबों के हम साथ खड़े हैं
मदद की आस में हम कई दिनों से भुखे पड़े हैं
रिकसा लेकर निकल पड़ा अस्सी साल का लाचार
हाथ जोड़ मिन्नतें कर रहा है वह बार बार।।
हवा मत निकालो साहब टायर का
घर कैसे जायेंगे कहते कहते रो रहे हैं।
जरा बाहर झांक कर तो देखो साहब
मेरे देश में लोग भुखे सो रहे हैं।।
शौक नहीं हमें घर से बाहर जाने की
जिम्मेदारी है साहब परिवार को खिलाने की
नहीं जली है चुल्हा मेरे घर परसों से
हम तो भुखे रह लेंगे साहब पर क्या कहेंगे बच्चों से
मेहनत खूब करते हम पाने दो वक्त की रोटी
बाहर नहीं जायेंगे दे हमें भोजन काम की गारंटी
मजबुरी में ही निकले हैं गरीब अपने घर से
जरा देखो तो साहब जिम्मेदारी की नजर से।।
भुखे प्यासे पैदल चलते न जाने
कितने खो रहे हैं
जरा बाहर झांक कर तो देखो साहब
मेरे देश में लोग भुखे सो रहे हैं।
मेरे देश में लोग भुखे सो रहे हैं।।
देश की मौजूदा हालात देखकर दिल से निकली पंक्तियां
✍️ नयताम हिरेश्वर

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