कल कल करती झरना कह रही है तुमसे,
ऐ ! कोयतुरों
संघर्ष कभी मत छोड़ना,
चटृटानों के आ जाने से।
निरन्तर आगे बढ़ते जाना,
मंजिल मिलता नहीं घबराने से।।
मायके से जब मैं निकली ,
सामान्य सी थी जलधारा,,
भा रही हुं सबको मैं सुन्दर,
चटृटानों से जब गिरी बनी फव्वारा।।
कहते पर्वत पहाड़ तुमसे, ऐ कोयतुरों!
न होना कमजोर तु कहीं,
अडिग रहना सदैव सीना तान।
टुटकर बिखरना नहीं कभी,
चाहे कितनी तेज चलें आंधी-तूफान।।
कह रहे हैं फुल तुमसे नित मुस्कुराने,
सत्यपथ पर सबको, सुगंध से अपना बनाने।
फल से लदे वृक्ष कहते तुमसे स्वार्थी मत बनो
निस्वार्थ भाव से सबके लिए,कर्म करते
चलो।।
कहती पक्षियां हमसे उड़ने अपनी पंख फैला,
नदियां कहती रुके कहिं तो, हो जाओगे मैला,
कहती आसमां छु लो मुझे, मंजिल जान
सब कुछ तु पा सकता है, ताकत अपनी पहचान।।
प्रकृति कहती हरपल तुमसे
ऐ कोयतुरों!
खुशमिजाज रहना सीखो हमसे।।
✍️ नयताम हिरेश्वर
ऐ ! कोयतुरों
संघर्ष कभी मत छोड़ना,
चटृटानों के आ जाने से।
निरन्तर आगे बढ़ते जाना,
मंजिल मिलता नहीं घबराने से।।
मायके से जब मैं निकली ,
सामान्य सी थी जलधारा,,
भा रही हुं सबको मैं सुन्दर,
चटृटानों से जब गिरी बनी फव्वारा।।
कहते पर्वत पहाड़ तुमसे, ऐ कोयतुरों!
न होना कमजोर तु कहीं,
अडिग रहना सदैव सीना तान।
टुटकर बिखरना नहीं कभी,
चाहे कितनी तेज चलें आंधी-तूफान।।
कह रहे हैं फुल तुमसे नित मुस्कुराने,
सत्यपथ पर सबको, सुगंध से अपना बनाने।
फल से लदे वृक्ष कहते तुमसे स्वार्थी मत बनो
निस्वार्थ भाव से सबके लिए,कर्म करते
चलो।।
कहती पक्षियां हमसे उड़ने अपनी पंख फैला,
नदियां कहती रुके कहिं तो, हो जाओगे मैला,
कहती आसमां छु लो मुझे, मंजिल जान
सब कुछ तु पा सकता है, ताकत अपनी पहचान।।
प्रकृति कहती हरपल तुमसे
ऐ कोयतुरों!
खुशमिजाज रहना सीखो हमसे।।
✍️ नयताम हिरेश्वर
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